श्री मद गुरुणां पद पदमध्यानं समस्त देवार्चन वन्दनाद्वरम्।
वाचस्तु तेवां सकलार्थ पूरका: पुनान्तु माँ गुरुपाद पांसव:।।१।।
अनन्त श्रीमि: समलंकृतोयो योगाग्निना तप्त सुवर्ण देहः।
कारूण्यमूर्ति: करूणार्णवोय: पुनान्तु माँ श्री गुरुपाद पांसव।।२।।
भक्ताय य: कल्पद्रुमस्तु साक्षात् यद्दर्शन पुण्यचयोर्द भवाय।
विभाति यस्यार्क निभंतु तेज: पुनान्तु माँ श्री गुरुपाद पांसव।।३।।
करोतिध्वंसं सकलंतु कल्मषं गंगेव पापं हरते समग्रम।
शशीवे सौम्य: सुशीतल: पुनान्तु माँ श्री गुरुपाद पांसव।।४।।
आगत्य भुविय: शिवरूप एवं योगाय दीक्षामदददज्जनेभ्य:।
भव तापतप्ताय परमौषधोय: पुनान्तु माँ श्री गुरुपाद पांसव।।५।।
श्री रामलालस्य महाप्रभोवैं कृपांशभूतोऽस्ति महान गुरुर्नः।
अस्मत्कृते स: परमेष्ट देवता पुनान्तु माँ श्री गुरुपाद पांसव।।६।।
अस्मद् गुरुणां महनीयवर्चसां वाणी गुणानां कथनेऽस्ति न क्षमा।
स एव ब्रहमा विभुरस्ति शंकर: पुनान्तु माँ श्री गुरुपाद पांसव।।७।।
योगीश्वर स परमेश्वरोन: अस्कत्कृते सः सर्वार्थ सिद्धि दः।
वसेत्सदा स मम नेत्रयोर्द्वयो पुनान्तु माँ श्री गुरुपाद पांसव।।८।।