दरबार हजारों देखे हैं तेरे दर सा कोई दरबार नहीं। --- टेक
जिस गुलशन में तेरा नूर न हो ऐसा तो कोई गुलजार नहीं।।
चाहत है यदि उस मंजिल की जिसके आगे कुछ और न हो।
मृग मूर्ख फिरे कस्तूरी को पाने की तुझे हसरत ही नहीं।। --- १
वह आँख ही आँख नहीं होती जिस आँख में शर्म हया ना हो।
वह दिल ही नहीं पत्थर होगा जिस दिल में तुम्हारा ध्यान न हो।। --- २
दुनियां से भला हम क्या मागें दुनियां तो खुद ही भिखारी है।
मागेंगे अपनें गुरुवर से जहाँ होता कभी इंकार नहीं।। --- ३
हसरथे है बख्ते रुखसत पर मेरा दम निकले तुम सामने हो।
तेरा दीदार ही काफी है कुछ और मुझे दरकार नहीं।। --- ४