जब से गुरुवर का संग मुझको मिलता गया
तर्ज - छोड़ बाबुल का घर
जब से गुरुवर का संग मुझको मिलता गया तेरे दर पर प्रभू में तो रमता गया
अब तक जो कुछ मिला सब है तूने दिया जो भी चाहा सदा ठीक समझा दिया हम न समझे कभी क्या है मन में तेरे तेरे रग में सदा मन में रमता गया
मन जो आया उसे हम निभाते रहे हार फूलों का हर दम चढ़ाते रहे प्रभु से लागी लगन दिल हुआ यों मगन दीप श्रद्धा का हर दम जलाता गया
समझे हम न कभी यों ही चलते रहे क्या था मालुम दिशा तुम ही देते रहे जब हुआ अंधकार ज्योती तुझसे मिली चंचल मन की घटा मोह मिटता गया
जो न अपना उसे हम मनाते रहे खोटे सिक्कों से घर हम सजाते रहे पथ प्रदर्शन मिला हट गए धुंध सब धूप में छाया दर तू बताता गया
इन्दौर, दि. 26. 70.2000