तर्ज - दीदी तेरा देवर टिवाना
गुरुवर तुमको कितनो ने जाना पहचान न पाया ये जमाना भक्तों पर दया दृष्टि करना मेरे राम मुझे न विसराना
मैं आया शरण में जब गुरुवर तुम्हारे तुम्हें तब ही जाना हो ईश्वर हमारे वहाँ हर दम दिखते ये ऐसे नजारे समझना कठिन था जनम है सुधार मुश्किल है उनको भूल जाना पहचान न पाया ये जमाना
कभी खेला करते कभी थे खिलाते चरण से लगाकर ध्यान में थे बिठाते जैसा गुरुवर कहते बैसा सब हैं करते पत्रों का उत्तर दया निधि लिखाते पलभर में कष्टों का मिटाना पहचान न पाया ये जमाना
वहाँ जो भी आता कुछ पाकर ही जाता मिटा कर अहम खुद का उनका हो जाता परम पूज्य गुरुवर सुलभ सबको होते सहज ही सभी को सदावर्त देते आश्रम लगता था सुहाना पहचान न पाया ये जमाना
खता क्या थी गुरुवर जो हमको विसारा कहाँ जायेंगे कौन देगा सहारा सेवक तो सदा से तुम्हारा रहा है रहेगा तुम्हारा तुम्हें पूजता है गुरुवर मुझको दर्शन दिखाना पहचान न पाया ये जमाना
दि. । जुलाई ।22