तर्ज - बचपन की मुहब्बत को
गुरुदेव कृपा करना चरणों में बिठा लेना मैं शरण पड़ा तेरी मुझे अपना बना लेना
मैं भटका हुआ राही मंजिल का पता ना है तुम कर दो कृपा दाता ना कोई सहारा है बिछुड़ा हूँ में अपनों से अब तुम ही दया करना
घनघोर अंधेरा है अज्ञान ने घेरा है प्रभु ज्ञान का दीप जला चहुँओर बचाना है डूबा हूँ मैं पापों में अब तुम को बचाना है
माया ममता ने प्रभू मुझको तो लुभाया है तुमको ही मेरे गुरुवर बन्धन से छुड़ाना है अब और कहाँ जाऊँ प्रभु से मेरा जीवन है
रविवार, दि. 9 जून ।996, इन्दौर