सद्गुरु शरण में आजाओगें तो हों जाओगे पार सद्गुरू शरण में आजाओगे तो हो जाओगे पार भव सागर में दूबे उतरे नैया है मझ धार
माया के सागर में दूबा था ये मन का मोती ममता मोह के कवच में बंद थी इसकी ज्योती तोड़ दो बंधन अब तो है सब कर दो ये उपकार दे दो शरण अपनी गुरुवर हो जाये उद्धार प्रभुजी हो जाये उद्धार
मैं मूरख था ढोता आया पाप की गठरी भारी तम विषाद की वेल पकड़कर भटकूं रात अंधियारी चरण छांव में रखकर गुरुवरं करवा दो अहसास जिस पर चल कर पहुँचे हम प्रभु ध्रुव सत्य के पास प्रभुजी ध्रुव सत्य के पास
मेरे गुरुवर अंतर्यामी सदा रहें वो साथ कहते है तुम्हारी शरण में खाली न जाये बात मेरी भी विपदा समझो प्रभु दर्शन दो घनश्याम टूट ना ये आस कभी प्रभु बना दो बिगड़े काम प्रभुजी बना दो काम
श्रीमती नमिता सिसोदिया, दि. ।5 जुलाई ! फर्