तर्ज हम आए हए है जो दुनिया ह
लागी है लगन प्रभुजी से छूटे न कभी ये ये डूबती नैया को लगा देना किनारे
अब प्रभुजी बिना गुरुजी बिना कौन है मेरा मन होत अधीरा मेरी सूनी है नगरिया हूँ दीन प्रभू आपका गिरने से संभालो
जिस पर भी पड़ी प्रभु की नजर हो गया उनका प्रभु मन में मेरे आना भक्ती ज्योति जगाना अब शरण गहूं किसकी प्रभू कौन बता दो
भगवान है दर्शन को मेरी अखियां ये प्यासी तुम बिन न कोई मेरा सुधी ले लो हमारी भव सिन्धु से कर देना प्रभू पार है मुझको
प्रभुजी है मेरे सामने गुरुजी भी वहाँ हो चरणों को पखारूँ मेरा घर वार वहां हो जाऊंगा जहाँ भी प्रभु लीला ही करूँगा
मुराम (स्वालियर) 2 तर