तर्ज - एक था ल्रुल और एक थी बलबल
पुर वाले चन्द्रमोहन जी वास रहा जिनका सिद्ध गुफा में शो दिशाये जिनसे अलौकिक रहना सदा मेरे मन में
किसी को देते रज प्रशाद और कष्टो को हर लेते वे लल्ला मुनियां देवी कहकर सबको अपना लेते थे पलक झपकते पहुँच वे जाते कर्म क्लिष्ट निपटाने में
कैसे कहें कोई शब्द नहीं है जो देखा जो पाया था आज भी यादें सता रही हैं वे क्षण पल जब साथ में था द्रह्मा विष्णु और सदाशिव मिली झलक मुख मण्डल से
आती थी आवाज फिजा में गुरु भक्तों जय कारों की हाथ उठा आशीर्वाद की मुद्रा रही मुखर प्रभु वाणी की दिव्य फूल मिष्ठान फलों को भर भर देते झोली में
सच्चे मन से जो भी बुलाता दिखें नहीं पर आते हैं अढ़िग अगर है निष्ठा हमारी अहसास करा वे जाते हैं जिन्होंने देखा आज भी वे हैं कह देंगे सब वाणी में
दि. 2 मार्च 2006, इन्दौर