तर्ज - दिल लूटनें वाले जादू
घट घट के वासी नाथ हो तुम मैंने दीन दयाल को पाया है कण कण के अंतर यामी हो सेवक चरणों में आया है
अरमान था प्रभुजी देखूं मैं गुरुजी के साथ है आश्रम में खो जाये हम है दीन दया प्रभुजी की प्यारी बातों में प्रभु सामने है तो सब कुछ है वरना ये जगत वीराना है
आते हैं आश्रम पर हे प्रभू ऋषि मुनियो से वे योगी है प्रभुजी को शीष नवाने को खुशियां मन में भर आती है सेवक तो क्या बीता है प्रभू चरणों का प्रभु ये दीवाना है
हर सांसों के तारो में प्रभू हर वीणा के झंकारों में प्रभुजी का नाम ही निकलेगा सेवक की इक इक बातों में है प्यास दया की प्रभुजी मुझे गुरुचरणों का ही सहारा है
ग्वालियर, वर्ष 4260