तर्ज - राजा की आयेगी बारात
यमुना के तट सखी आज मुरली रही वाज दरश में तो पाऊँगी
मन मोहन की मोहनी मुर लिया कैसा मचाय रही शोर झूम रहा है जग मस्ती में मुरली बजाए मेरे चोर कैसी निराली लेवे तान जिया कुर्बान दरश में तो पाऊँगी
छूट गई मेरी लोक लाज सब रहा न मन का धीर निश दिन मेरी आँखों में फिरती मोहन की तस्वीर किसको मैं दुखड़ा सुनाऊँ मैं चैन कैसे पाऊँ दरश में तो पाऊँगी
प्रेम दिवानी मैं तो मस्तानी दुनियाँ से नहीं मुझे काम चमन मेरे मन मन्दिर में तो बस गए राधेश्याम उन्हीं के गुण गाऊँ उन्हीं के सिर नाऊँ दरश में तो पाऊँगी
चमन, वर्ष 4959, पूर्णिमा शमशाबाद से प्राप्त