तक झोली में फूल भरे हैं एक झोली में कांटे तेरे जस में कुछ भी नहीं ये तो बाटनें वाला बांटे कोई कारण होगा अरे कोई कारण होगा
पहले बनती है तकदीरें फिर बनते हैं शरीर कोई राजा कोई शिकारी कोई संत कबीर
धन का विस्तर मिल जाये पर नींद पकड़ते नैन कांटों पर सोकर भी आये किसी के मन को चैन
मन्दिर मस्जिद में आकर भी कभी न आये ज्ञान कहीं मिले मिट्टी में मोती पत्थर के भगवान
सागर से भी एक बुझ ना पाती कभी किसी की प्यास कभी एक ही बूंद से हो जाती है पूरी आस
एक झोली में फूल भरे हैं एक झोली में कॉँटे हि तेरे बस में कुछ भी नहीं है ये तो बाटनें वाला जानें कोई कारण होगा अरे कोई कारण होगा किन
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