कौन कहता है कि दीदार नहीं होता है आदमी खुद ही तलवगार नहीं होता है
तुम पुकारों तो सही प्रेम से उस ईश्वर को देखना कैसे वो साकार नहीं होता है
जब बुलाते हैं भक्त खुद को यहां पर खोकर देखना कैसे वो साकार नहीं होता है
तुम करो याद उसे वो न करे याद तुम्हें बेखबर इतना वो करतार नहीं होता है
जब बुलाते है भक्त उसको यहां पर खोकर तो फिर भगवान से इंकार नहीं होता है
पहले प्रह्लाद बनो फिर पुकारो उसको यो हीं नरसिंह का अवतार नहीं होता है
जब तलक होती नहीं उसकी निगाहें सी धी आदमी भव से कभी पार नहीं होता है
उस गुनहगार को भगवान नहीं दिख सकते जो गुनाहों से शरमगार नहीं होता है