सदियों में कभी प्रभु भेजते हैं योगी चंद्रमोहन सा दुनिया में सदियों में कभी प्रभु भेजते हैं
मेरा आश्रम सँवाई सदा वैसा नहीं जल वायु धरा में शक्ती है स्वर आज भी गूँज सुनाते है यदि भावना में इच्छा शक्ती है अनमोल समय जो बच रहा लगजा इस धाम संवाई में
एक ढूढ़ों यहां पर मिलते हजार गुरुओं से ये संसार भरा लोहा चुम्बक दिखते एक से है इक शक्तिहीन इक शक्ति भरा परखा जाता जब दोनों को चुम्बक सी बात न लोहे में
जो पथ पत्थर ठोकर खाये घन सूमी से मूरत बन जाए चरणों में समर्पित होकर के देखो क्या से क्या नर बन जाए तेरा मन निर्मल हो जावेगा मिल जाएगी राह हजारो में
संतो का समागम तीरथ दर्शन अति दुर्लभ यतन से मिछते है पापों जन्मों से मुक्ती के यहाँ लोग सहज ही लेते है ये फूलों में जै ब्रहाकमल खिलते नहीं हर दिन बागो के
क्या भूल गए लल्ला मुनिया हर पल चरणों के लिपटते थे कैसे भूलोगे उन शब्दों के श्रीमुख से निकलते हरदम थे गुरुवर तो बहुत मिल जायेंगे होंगे नहीं ऐसे हजारो में
गुरुवार, दि. 29 मार्च 2009