तर्ज - इक वो भी दिवाली हि
ए श्याम तेरी मुरली को हर कान तरसे हैं तेरे भक्त तके राहें तेरी आँखे तरसती है
हर युग में तू आता है गीता को नियमा है दुष्टों का दमन करे सद्कुल को बचाना है अब वो न जमाना है नहीं कर्म सुनिश्चित है
जो है ही नहीं पण्डित खण्डित है सभी कर्मों से पुजवाए वे जाते हैं बहुमत के समर्थन से भटका हुआ मंजर है जीवन न सुरक्षित है
कुछ बन्दे तेरे अब भी सद्राह बताते हैं सत्संग में हो तन्मय उपदेश सुनाते हैं हर जन को मिले सद्बुद्धि अपनो को बचाना है
सच बलि वि दि. 29 मई 20077 ही