मेर तन मन धन सब अर्पण प्रभू तन मन धन सब अर्पण प्रभू तन मन धन सब अर्पण मेरा तन मन मन धन सब
लल्ला मुनियाँ देवी कहकर हर जन को अपनाते थे योग विभूषित रज दे देकर कष्टों को दूर भगाते थे विश्व योग में चमका सूरज दूर अंधेरा समाया
आते थे हर एक दिशा से दर्शन पाने अभिलाषी कहनें को कुछ शब्द नहीं है सिद्धयोगी अति मूदुभाषी दीन दुःखी अल्पज्ञ सभी को बढ़ कर गले लगाया
कोटि कोटि योनी में जाकर तन मनुष्य का मिलता है करो कर्म बन जाओ योगी हर पल घटता जाता है योगेश्वर की अमर कहानी सबमें प्रेम जगाया