दर बड़ी दूर बर्फीले धाम में श्री योगीराज महाप्रभुजी विराजते हैं
काली जटाएं भस्मी समाए दिल को लुटाये महाप्रभुजी मोहनी मूरत प्यारी सी सूरत सबकी जरुरत महाप्रभुजी
चिमटा विशाला महा विकराला दुष्टों का काम तमाम करे मधुर मुस्कान जैसे मीठी कोई तान अपने भक्तों को अभय प्रदान करें
उठेदिल में हिलौरे जब हम सबकी ओर अपनी नजरों में कोर प्रभुजी डाले कहते भाव विभोर जैसे चन्दा चकोर जैस बदरा को देख मोर नाचते हैं
अखण्ड मण्डलाकार वो तो हैं जगदा धार उनकी महिमा अपार सब जानते है देते पुष्प प्रशाद हरते सबके अवसाद करते भक्तों को आषाद सब मानते
नरेन्द्र भारद्वाज, इन्दौर दि. दिसमबर 2005