हे मेरे गुरुदेव करुणा सिन्धु करुणा कीजिए।
हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिए।।
खा रहा गोते हूँ मैं भव सिन्धु के मझँघार में।
आसरा है दूसरा न कोई इस संसार में।।
मुझमें है जप-तप न साधन और नहीं कछु ज्ञान है।
निर्लज्जता है एक बाकी और बस अभिमान है।।
पाप बोझ से लदी सैया भँवर में आ रही।
नाथ दौड़ो अब बचाओ जल्द डूबी जा रही।।
आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊँगा मैं।
जनम दुःख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा मै।।
सब जगह मंजुल भटक कर ली शरण अब आपकी।
पार करना या न करना दोनों मर्जी आपकी।।
हे मेरे गुरुदेव करुणा सिन्धु करुणा कीजिए।
हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिए।।