दरबार है योगी योग सिखाते है2003 का प्रभु योग जी योगेश रामलाल जा कुहाते है पटना हुए राही को प्रभु राह दिखाते हैं।
शरणागत पालक है इन सा ना सानी है आलम्ब नहीं इनसा कोई ब्रह्मज्ञानी है आता है शरण दरबार है - जो भी पन्थ काष्ठ लगाते है
अन्यों को तमिले ज्योती निर्बल बलवान बने गुगों को मिले वाणी, निर्धन चन्वान बने प्रभु दया के सागर है, दुख दर्द मिटाते है। दरबार है
जनमों के करे बन्धन, क करे योग साधना जो श्रद्धा और भक्ति से, करे प्रभु अराधना जो रुपै अपना भक्तों को को हर पल दिखलाता है
है योगी भटके दूए रराही को प्रभु रामलाल गुरुजी